ईश्वर में अविश्वास क्यों - १
शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी - शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी का जन्म रामनवमी सावत् १९३८ को मुंशी छोटेलाल के घर नीमच मध्यप्रेश में हुआ। इनकी मेट्रिक तक की शिका इंदौर में हुई। १८ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया, जो जीवन निर्वाह के लिए इन्होंने नौकरी कर ली। उसे छोड़कर कुछ समय पश्चात अपने ससुर की दुकान में स्वर्णकारीगर का कार्य करने लगे। इसमें उन्हें अच्छी सफलता और लोकप्रियता प्राप्त हुई। ३६ वर्ष की आयु में इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया तब समाज एवं परिवार का बहुत दबाव दूसरे विवाह के लिए पड़ा पर यब उन्होंने विवाह से सर्वथा इंकार कर दिया और अपना अधिक समय धर्मग्रंथो के अध्ययन में लगाने लगे।
उन दिनों दिल्ली के चांदनी चौक के फुहारे पर दो मौलवी और ईसाई अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। पं. रामचंद्र जी उनके व्याख्यानों में हिन्दू धर्म पर आक्षेपों को सुनकर अपने ऊपर ग्लानि करने लगते। अतः इन्होंने उनके प्रचार का मुकाबला करने के लिए उसी स्थान पर नियमित रूप से व्याख्यान देना शुरू किया। तब लोग इनके उपदेशों से प्रभावित होते चले गये और मौलवी पादरियों के व्याख्यान का प्रभाव नगण्य होता चला गया। इनके व्याख्यानों में इतनी भीड़ होने लगी कि रास्ता ही जाम हो जाता। तब पुलिस ने इनके व्याख्यान के लिए गांधी ग्राउंड निश्चित कर दिया। वहां १४ वर्ष तक इनके निरंतर व्याख्यान होते रहे शनैः शनैः आर्यसमाज के श्रेष्ठ वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गये और सारे देश में व्याख्यान और शास्त्रार्थ के लिए जाने लगे। हैदराबाद का निजाम तो इनके व्याख्यानों से हिल गया था। इन्होंने कई ग्रन्थ लिखे हैं। इनके लेखों व्याख्यानों का संग्रह रामचंद्र देहलवी लेखवाली प्रसिद्ध है। अच्छी आयु भोगकर २ फरवरी १९६८ में दिल्ली में इनका स्वर्गवास हुआ।
संपादक - आजकल कुछ मित्रादि अथवा दूसरे व्यक्ति जब मुझसे मिलते हैं तो मुझसे प्रायः यह प्रश्न किया करते हैं, क्या कारन है कि ईश्वर के अस्तित्व के विषय में इतने भाषण होते हैं फिर भी लोगों का ईश्वर में विश्वास समाप्त होता जा रहा है ?'' बात सत्य है और मुझे यह स्वीकार करना पड़ता है कि लोगों का ईश्वर में अविश्वास बढ़ता जा रहा है। आज ईश्वर में अविश्वास क्यों बढ़ता जा रहा है, इसके कारण हैं ? इसी विषय पर विचार रखूंगा।
१. परिवार में ईश्वरभक्ति या पूजा का न किया जाना - आजकल परिवारों में न ईश्वरभक्ति है न ईश्वर आराधना किया जाता है, संध्या, अग्निहोत्र आदि की ओर भी कोई ध्यान नहीं है। इसके न होने के कारण ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास समाप्त होता जा रहा है। जहां हर समय रडियो बजता है, सिनेमा के गाने गाये जाते हैं और अल्लाह से ज्यादा नम्बर सुरैया का है, वहां ईश्वर को कौन पूछता है ? जैसा घर का वातावरण होता है वैसा ही प्रभाव पड़ता है। घर में ईश्वरीय भक्ति या पूजा न होने के कारण ईश्वर को भूल जाते हैं, ईश्वर का विचार ही नहीं रहता। ईश्वर में आस्था और विश्वास उत्पन्न करे के लिए ईश्वरभक्ति और पूजा जारी रहनी चाहिए।
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२. ईश्वर को ऐसे रूप में रखना जो समझ में न आये - ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, सर्व्यापक है, परन्तु सम्प्रदायी लोगों ने उसको साधारण जनता के सामने उल्टे ढंग से रखा है। सम्प्रदायी लोगों के सामने रख दिया। इसमें परमात्मा का कोई दोष नहीं क्योंकि परमात्मा तो सबको ज्ञान देता है। जब कोई बुरा कर्म करने लगता है तो उसे उस कार्य को करते भय, शंका और लज्जा होती है, परन्तु उस इस ज्ञान को लेता कोई कोई है। जैसे मच्छर सारे में 'पिन-पिन' करता है परन्तु सुनाई उस समय देता है जब वह कान के पास आता है। सम्प्रदायी लोगों ने अपने अज्ञान के कारण मकान के एक आले में गणेश मूर्ति ईश्वर घोषित कर दिया। परन्तु क्या गणेश ईश्वर हो सकता है? कदापि नहीं। क्या हाथी का सिर कभी किसी बच्चे के सिर पर आ सकता है? ऐसी बातों से अविश्वास तो होगा ही। महर्षि दयानन्द ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में मूर्तिपूजा को अवैदिक बताते हुए इसके खंडन में १६ युक्तियां दी हैं।
३. बहुत प्रार्थना करने पर भी इच्छा की पूर्ति न होना - कभी कभी ऐसा होता है कि बहुत बार प्रार्थना कर पर भी इच्छा पूरी नहीं होती। इससे ईश्वर में अविश्वास उत्पन्न होता है। तब लोगों की इच्छा पूरी नहीं होती तो वे कहते हैं कि परमात्मा अपने पुत्र जीवात्मा की इच्छा पूरी करने में (Miserably fail) बुरी तरह फैल हो गया। परन्तु यह बात ठीक नहीं है
प्रार्थना का फल इच्छा की पूर्ति नहीं अपितु प्रार्थना का फल है अभिमान का नाश, उत्साह की वृद्धि और सहायता का मिलना। कभी मनुष्य किसी कठिनाई कार्य को कर लेता है तो उसकी अपनी शक्ति का अभिमान हो जाता है परन्तु जब वह सोचता है कि ईश्वर अधिक शक्तिशाली है तो उसका अभिमान चूर हो जाता है। जब मनुष्य का ईश्वर में पूर्ण विश्वास होता है तो उसमें उत्साह की वृद्धि होती है और कार्य करते हुए उसमे सहायता भी प्राप्त होती है।
४. भगवान जागरूक नहीं, प्रमाद में पड़ा हुआ है - पुलिस कितनी सतर्क है। दिन का तो कहना ही क्या, रात में भी चोर और डाकुओं को पकड़ती है, किन्तु ईश्वर कुछ नहीं करता इसलिए प्रमादी है और उसके प्रमादी होने से ही लोगों में ईश्वर अविश्वास बढ़ता जा रहा है।
समाधान - यहां एक ही बात के दो हिस्से कर दिये हैं। गवर्नमेण्ट परमात्मा का ही प्रबंध है। वह ईश्वर के कार्य में सहायक है। ईश्वर सब कुछ देखता है परन्तु सब कुछ नहीं कर सकता और सब कुछ करना आवश्यक भी नहीं। परमात्मा सदा जागरूक रहता है, वह प्रमादी कदापि नहीं हो सकता। - शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी
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Shastraartha Maharathi Pt. Ramchandra Dehalvi - Shastharth Maharthi Pt. Ramachandra Dehalvi was born in Ramnavami Savat 1936 in Neemuch Madhya Pradesh, home of Munshi Chhotalal. His metric till Shika took place in Indore. He got married at the age of 14, who took a job for a living. After leaving him, after some time, he started working as a goldsmith in his father-in-law's shop. In this he gained good success and popularity.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...