महर्षि दयानन्द की देश वन्दना
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के मार्ग को छोड़कर दूसरे विदेशी मतों पर अधिक झुक जाना, अंग्रेजी भाषा पढकर अभिमानी होकर झटिति एक अलग पन्थ चलाने में प्रवृत्त हुए मनुष्यों का स्थिर और वृद्धिकारक काम क्योंकर हो सकता है?
देश के प्रति समर्पित ऋषि की यह देश वन्दना बहुत सरल हृदय से लिखी गई है। उनकी इस वन्दना में कहीं कोई छल-कपट पक्षपात और तुष्टीकरण की गंध नहीं है।
Maharishi Dayanand, the founder of Arya Samaj, has given us a sense of duty in Satyarth Prakash. This sense is worth imbibing for every citizen of the country. Well, when we were born in Aryavart and ate the food and water of this country, and even now we eat and drink it, then how can the work of people who leave the path of their parents and forefathers and lean more towards other foreign religions, become arrogant after studying English language and start following a different path, be stable and progressive?
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महर्षि दयानन्द की देश वन्दना आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के...