स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - २
१९१३ में १८ मार्च से २३ मार्च तक गांधी जी प्रायः हरिद्वार मुख्यतः गुरुकुल कांगड़ी में रहे। १८ मार्च को गुरुकुल कांगड़ी में अछूतोद्धार सम्मेलन हो रहा था। गांधी जी भी इस सम्मेलन में शामिल हुए। अपने अस्पृश्यता निवारण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हिन्दुओं को प्रायश्चित की भावना से कार्य करना चाहिए। २० मार्च को गुरुकुल का पुरस्कार वितरण समारोह था। गांधी जी इस समारोह में शामिल हुए। आपने कहा पाठशाला का ग्रामीण जीवन, ग्रामीण शिल्प, खुली हवा, आजादी तथा अपने लोगों की सेवा के प्रति आकर्षण उत्पन्न करना चाहिए। इसी दिन गुरुकुल कांगड़ी के वार्षिक उत्सव में उन्होने एक मार्मिक भाषण दिया। उन्होंने उचित धार्मिक भावना हमारी सबसे बड़ी तात्कालिक आवयश्यकता है। हमारी धार्मिक भावना सुप्त है और हम लोग इस कारण हमेशा भयभीत बने रहते हैं।
२३ मार्च को उनकी तबियत ठीक न होने पर भी आर्यसमाज भवन हरिद्वार में उन्होंने दयानन्द स्कूल के विद्यार्थियों के सामने एक छोटा सा भाषण देते हुए कहा कि अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनाना चाहिए, तभी तो वे देश के प्रति सच्चे बन सकते हैं। गुरुकुल कांगड़ी के महात्मा मुंशीराम के साथ मार्च १९१६ में महात्मा गांधी जी की मुलाकात शायद अंतिम मुलाकात थी, क्योंकि अगले वर्ष १९१७ में ही महात्मा मुंशीराम जी ने सन्यांस आश्रम में प्रवेश किया और वे स्वामी श्रद्धानन्द बन गए। संन्यासी बन जाने पर स्वामी श्रद्धानन्द जी केवल गुरुकुल कांगड़ी में न रहकर सकल मानव जाति के बन गए। अपने जान सेवा विशेषकर राष्ट्रीय सेवा में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। महात्मा गांधी जी के आग्रह पर आपने कांग्रेस को सहयोग देना भी स्वीकार लिया। १९१८ में गढ़वाल (वर्तमान उत्तरांचल) में अकाल पद गया। उन दिनों पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। अतः भारत की अंग्रेज सरकार का तो अपना राज सिंहासन ही डांवाडोल था।
गढ़वाल की अकाल पीड़ित जनता की और ध्यान देने के लिए न उनके पास समय था और न ही सरकार इसकी आवयश्कता ही समझती थी। सरकार का तो यत्न था कि भारत की जनता को यत्न गढ़वाल अकाल की खबर तक न हो, परन्तु स्वामी श्रद्धानन्दजी जी को इस अकाल का पता चला तो उन्होंने अपने अखबार ''सत्यधर्म प्रचारक'' इस अकाल का पूरा विवरण लिखकर जनता से सहायता की अपील की। स्वामी जी की अपील पढ़कर लोगों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि धन पानी की तरह बरसने लगा। स्वामी जी अपने साथियों को लेकर गढ़वाल पहुंच गए और सरकारी विरोध बाधाओं की परवाह न करते हुए दुःख और विवश जनता की सेवा में जुट गए।
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan -20 | Introduction to the Vedas | धर्म की कसौटी - सबका कल्याण
१९१९ का वर्ष भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष था। विश्वयुद्ध में बुरी तरह फंसी ब्रतानवी सरकार ने भारत से धन और जन की सहायता प्राप्त करते हुए भारत की जनता को आश्वासन दिया था कि युद्ध जीत लेने के पश्चात अंग्रेजी सरकार भारत को आजाद कर देगी। पर युद्ध समाप्त होते ही विदेशी सरकार ने भारत भर में रोलट एक्ट लागू कर दिया। इस विश्वासघात के कारण जनता जनार्दन में असंतोष व द्वेष फ़ैल गया। महात्मा गांधी ने तंग आकर रौलेट एक्ट के विरुद्ध अहिंसात्मक सत्याग्रह की घोषणा कर दी। तब मातृभूमि की पुकार सुनकर राष्ट्रहित के लिए अपनी आहुति देने के लिए स्वामी श्रद्धानन्द जी को चुना गया। दिल्ली में सत्याग्रह कमेटी का गठन किया गया, जिसका प्रधान स्वामी श्रद्धानन्द जी को चुना गया। कमेटी ने ३० मार्च की सायं को स्वामी जी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई। अलगे दिन ३० मार्च को दिल्ली भर में हड़ताल हुई। ३० मार्च १९१९ जब दिल्ली की जनता का नेतृत्व करते हुए वे चांदनी चौक के घंटाघर के निकट पहुंचे तो गोरखा सिपाहियों ने अपने बंदूकों की संगीने स्वामी जी की ओर तानते हुए कहा - ''हट जाओ नहीं तो छेद देंगे।'' यह सुनकर स्वामी जी एक कदम और आगे बढे गए। अब संगीन की नोक स्वामी जी की छाती को छू रही थी। स्वामी जी ने बड़े ऊंचे स्वर में कहा - ''चलाओ गोली'' और वही खड़े रहे। वौ सैनिक स्वामी जी पर गोली चलाने की साहस नहीं जुटा सके। ४ अप्रैल, १९१९ को जामा मस्जिद दिल्ली में उसी सप्ताह अंगेजी सिपाहियों की गोलियों से शहीद होने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया। शहीद होने वाले ५ युवकों में तीन हिन्दुओं और दो मुसलमान युवक थे।
अन्य लोगों के साथ स्वमी श्रद्धानन्द जी को विशेष रूप से श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया। मस्जिद के मिम्बर पर खड़े होकर स्वामी श्रद्धानन्द जी ने अपना भाषण वेदमंत्र के उच्चारण से आरम्भ किया। स्वामी जी के विचार सुनकर उपस्थित जन समूह देश भक्ति के नशे में झूम उठा। जामा मस्जिद की मिम्बर से भाषण देने वाले पहले तथा अंतिम गैर मुस्लिम व्यक्ति केवल मात्र स्वामी श्रद्धानन्द जी ही हुए हैं। उसी वर्ष अमृतसर में जलियांवाले बाग़ का खुनी काण्ड घटित हो गया। कांग्रेस का सालाना अधिवेशन अमृतसर में किया जाना असम्भव लगने लगा था, तब स्वामी जी ने इसका सारा दायित्व समिति अध्यक्ष बना दिया गया। अमृतसर में कांग्रेस का १९१९ में सालाना अधिवेशन सफलता पूर्वक कराना और स्वागत अध्यक्ष के पद से प्रथम बार हिन्दी भाषा में स्वागत भाषण करना स्वामी श्रद्धानन्द जैसे निर्भिक पुरुष के लिए ही सम्भव था।
सितम्बर १९२२ में सिखों ने अंग्रेजी सरकार की दमन नीति के विरुद्ध ''गुरु के ब्याज'' का मोर्चा आरम्भ कर दिया। स्वामी श्रद्धानन्द जी अकालियों को अपना सहयोग और आशीर्वाद देने के लिए दिली से चलकर अमृतसर पहुंच गए। वहां उन्होंने अकाल तख्त के निकट हुई सभा में जो भाषण दिया। उससे चिढ़कर उस समय की पंजाब सरकार ने आपको जेल में बन्द कर दिया। एक साल चार महीने की जेल यात्रा पूरी कर दिसम्बर १९२३ में स्वामी जी को रिहा किया गया। - तरसेम कुमार आर्य
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The year 1919 was a very important year in the history of India. The British government, which was badly trapped in the World War, while receiving the help of money and people from India, assured the people of India that the British government would liberate India after winning the war. But as soon as the war ended, the foreign government implemented the Rowlatt Act across India. This betrayal led to dissatisfaction and malice in Janata Janardhana. Mahatma Gandhi got fed up and declared non-violent satyagraha against the Rowlatt Act.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...