स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - १
सन् १८९७ में धर्मवीर पंडित लेखराम जी शहीद हो गए और आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का पूरा दायित्व लाला मुंशीराम जी के कन्धों पर आ पड़ा। लाला मुंशीराम जी ने सन् १८९८ में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के अधिवेशन में महर्षि दयानन्द जी की शिक्षा संस्था जारी करने का प्रस्ताव पास कराया जिसे आगे चलकर गुरुकुल का नाम दिया गया।
१६ दिसम्बर, १९०० के दिन इस गुरुकुल की स्थापना गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) की गई, परन्तु लाला मुंशीराम जी ने वेदों में पढ़ा था ''उपवहरे गिरीणां संगमें च नदीनां धियां विप्रो अजायत्। '' परमपिता परमात्मा ने मुंशीराम जी की सुन ली। जिला बिजनौर के नजीबाबाद के जमींदार अमन सिंह ने गंगातट पर बसा हुआ अपना कांगड़ी गांव उन्हें इस पविता काम के लिए दान दे दिया। अतः १९०२ में गुरुकुल गुजरांवाला से कांगड़ी में शिफ्ट कर दिया गया। और इसका नाम गुरुकुल कांगड़ी पद गया। गुरुकुल कांगड़ी शिक्षा के क्षेत्र में तो एक अदभुत परीक्षण था ही पर लाला मुंशीराम जी शिक्षा प्रसार के साथ-साथ धर्म प्रचार और समाज-सुधार विशेषतः अछूतोद्धार का कार्य अपने हाथ में लेकर उसको आगे बढ़ाने में जुट गए। इससे पहले कि महात्मा मुंशीराम जी सन्यास आश्रम में प्रवेश कर स्वामी श्रद्धानन्द बनकर गुरुकुल कांगड़ी को विदा कहते, कुछ ऐसी घटनाए घाटी जिसके कारण स्वामी श्रद्धानन्द जी राष्ट्रीय सेवहित स्वतंत्रता अंदोलन में जुटे दूसरे नेताओं के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने लगे।
१९१४ में जब गांधी जी अभी दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगन की समस्या सुलझाने में लगे हुए थे, तब उन्हें भारत से अपने परम हितैषी एवं मित्र चारली एण्डरुज (सी.एफ.एण्डरुज )का एक पत्र मिला। पत्र में अन्य बातों के साथ गांधी जी को भारत लौटने पर तीन व्यक्तियों से अवश्य ही मिलने का आग्रह किया था। इन तीनों व्यक्तियों में एक थे गुरुकुल कांगड़ी के महात्मा मुंशीराम। गांधीजी अलगे वर्ष १४ जनवरी १९१५ शनिवार के दिन अफ्रीका से वापस मुंबई पहुंचे। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है - ''इस साल (१९१५) हरिद्वार में कुम्भ का मेला पड़ता था। उसमें आने की मेरी प्रबल इच्छा टी फिर मुझे महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन भी करने थे। अतः गाँधीजी ६ अप्रैल १९१५ मंगलवार की प्रातः गुरुकुल कांगड़ी देखने गए। वहां अपने महात्मा मुंशीराम से भेंट की और उनकी बैलगाड़ी से वापस हरिद्वार आ गए। ''फिर ८ अप्रैल को गुरुकुल के ब्रम्ह्चारियों की ओर से गांधीजी का अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए महात्मा मुंशीराम जी ने कहा था - ''मुझे आशा है कि महात्मा गांधी जी भारत के लिए ज्योति स्तम्भ बन जायेंगे।'' उनकी वाणी आगे चलकर सिद्ध हो हुई। गांधी जी को ''महात्मा गांधी'' के नाम से सम्भोधन करने का शायद यह प्रथम अवसर था।
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In 1897, Dharmaveer Pandit Lekharam Ji became a martyr and the entire responsibility of Arya Pratinidhi Sabha Punjab fell on the shoulders of Lala Munshiram Ji. Lala Munshiram ji passed the proposal of releasing education institution of Maharishi Dayanand ji in the session of Arya Pratinidhi Sabha Punjab in 1897 which was later renamed as Gurukul.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...