व्यक्ति अंतर्मुखी हो
अंतर्मुखी होकर यह नहीं देखा जाता कि सब उपलब्धियों के लिए जिस पात्रता की आवश्यकता थी, वह अपने भीतर है या नहीं है। यदि नहीं है तो फिर उसे ठीक किया जाए। यदि ईश्वर निष्ठुर होता, देवता स्वार्थी होते तो उनका व्यवहार सभी के साथ वैसा होना चाहिए था। जब दूसरों पर अनुकंपा होती है तो अपने उच्चस्तर के अनुरूप उन्हें हमारे ऊपर भी कृपा करनी चाहिए थी। यदि उनके व्यवहार में अंतर है तो देखा जाना चाहिए कि अपने व्यक्तित्व में ही ऐसे दोष-दुर्गुण तो नहीं घुसे हुए हैं, जो उन्हें पीछे हटने और असहयोग करने के लिए जो उन्हें पीछे हटने और असहयोग करने के लिए बाधित करते हों। यह आत्मनिरीक्षण तभी हो, व्यक्ति अंतर्मुखी हो।
By being an introvert, it is not seen whether the eligibility required for all achievements is within oneself or not. If not, then it should be fixed. If God was cruel, God was selfish, then he should have treated everyone like this. When others are compassionate, they should have shown mercy to us according to their high standards. If there is a difference in their behavior, then it should be seen that such defects and defects are not ingrained in their personality, which make them to retreat and non-cooperation which hinder them to back down and non-cooperation. This introspection can happen only when the person is an introvert.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...