धन की शक्ति
धन की शक्ति बड़ी सीमित है। उससे शरीर का निर्वाह करने वाले पदार्थ खरीदे जा सकते हैं; जिनकी वास्तविकता बहुत ही सीमित है। जमा किया हुआ अत्यधिक धन किसी के कुछ काम नहीं आता। सब जहाँ-का-तहाँ पड़ा रह जाता है। जिन उत्तराधिकारियों के लिए उसे जोड़ा जाता है, वे उस मुफ्त के माल से बेरहम ऐयाशी करते हैं और उसे बारूद की तरह फूँककर तमाशा देखते हैं। मुफ्त की मिली हुई पैतृक संपत्ति उत्तराधिकारियों को निकम्मा, आलसी, व्यसनी, फजूलखरची एवं दुर्गुणी बना देती है; इसलिए संतान के लाभ के लिए जोड़ा गया धन वस्तुतः उनकी हानि ही करता है।
The power of money is very limited. Subsistence for the body can be bought from him; Whose reality is very limited. Too much money accumulated is of no use to anyone. Everything is left somewhere. The heirs to whom it is attached do ruthless debauchery with that free commodity and watch the spectacle by blowing it like gunpowder. Free ancestral property makes the heirs useless, lazy, addicted, extravagant and depraved; Therefore, the money added for the benefit of the children actually harms them.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...