निष्पक्ष न्याय
हम अपने लिए जैसा व्यवहार दूसरों के द्वारा होने की आशा करते हैं; वैसा व्यवहार हमें दूसरों के साथ करना चाहिए। दूसरों के हितों को आघात पहुँचा कर अपना स्वार्थ-साधना करने की नीति से हमें प्रयत्नपूर्वक बचना चाहिए। यह सत्य है कि संसार में अधिकांश दुःख हमारे पापों के परिणामरूप होते कई बार कर्मफल तुरंत मिल जाता है। जिसके साथ बुरा किया गया, उसके द्वारा, प्रत्याक्रमण, सामाजिक अपकीर्ति, लोगों के असंतोष एवं असहयोग के कारण ओने वाली हानि एवं राजदंड द्वारा उस बुराई का दंड मिल जाता है। इनसे भी कोई व्यक्ति बच जाए तो ईश्वरीय निष्पक्ष न्याय द्वारा प्राप्त होने वाले दंड से कोई व्यक्ति बच नहीं सकता।
We expect others to treat us the same way; We should treat others the same way. We should try our best to avoid the policy of self-serving by hurting the interests of others. It is true that most of the miseries in the world are the result of our sins, sometimes the fruits of action are immediately received. The one who has been wronged gets the punishment for that evil by means of retaliation, social disgrace, loss due to dissatisfaction and non-cooperation of the people and scepter. Even if a person escapes from them, then no one can escape the punishment received by God's impartial justice.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...