सम्बन्ध एक मिथ्या -
केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें?
तो क्या परिवार को छोड़कर जंगल में चले जाना चाहिए?
ऐसा तो नहीं किन्तु तन से सबके साथ रहते हुए, यथायोग्य सम्बन्ध रखते हुए, मन से सम्बन्ध तोड़ दो, वाणी से यह किसी से मत कहो कि तुम हमारे नहीं और हम तुम्हारे नहीं परन्तु अन्दर से यह निश्चय कर लो कि मैं किसी का नहीं, मेरा कोई नहीं और यदि किसी का बने बिना या किसी को अपना बनाए बिना न रहा जाए तो यह निश्चय करो कि मैं परमात्मा का हूँ, परमात्मा मेरा है। जैसे मुसाफिर, मुसाफिरखाने को सरकारी इमारत समझता है और दूसरे मुसाफिरों को कुछ समय का साथी समझता है वैसे ही तुम भी घर को मुसाफिरखाना समझो और परिवार को थोड़े समय के साथी समझो।
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सम्बन्ध एक मिथ्या - केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें? तो क्या...