अपना लक्ष्य
जो काम करते हुए हम आज वर्तमान स्थिति में पहुचें हैं अगले जन्म में भी इसी आयु तक ऐसी स्थिति तक पहुंच पाएंगे। बार-बार जन्म लेते रहेंगे और बार-बार इसी स्थिति को प्राप्त करते रहें तो इससे कुछ भी लाभ होने वाला नहीं है और यदि सब कुछ पुनः भी लिए तो क्या इस परिस्थिति तक पहुँच पायेंगे भी या नहीं, न जाने कौन से धर्म, कौन से कुल और कैसे परिवार में जन्म मिले। इसलिए ही यदि कोई व्यक्ति ईश्वर की भक्ति करना चाहता है तो उसे इसी जन्म में, आज ही और अभी से ईश्वर की भक्ति को अपना लक्ष्य बना लेना चाहिए।
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महर्षि दयानन्द की देश वन्दना आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के...