प्रसन्नचित्त
दी न्यूयार्क टाइम्स में स्वास्थ्यविषयक निबंधों के लेखक जैन ब्रॉडी का कहना है कि पश्चिमी देशों के कई अस्पतालों में नर्सों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है कि वे रोगी के मन को हलका करने में तथा उन्हें प्रफुल्ल कर सकने में सफल हो सकें; क्योंकि मानसिक कुंठाओ से ग्रसित व्यक्ति सदैव उखड़ा-उबा-सा ही रहता है। उसके चेहरे पर मूर्छना-सी ही छाई रहती है। किन्तु हँसने-हँसाने का वातावरण विनिर्मित करने से उसके मन में उत्साह-उमंग की लहर जगती है। इसीलिए कुछ अस्पतालों में तो वीडियो, टेप विनिर्मित किए जा चुके हैं, जिन्हें देखकर रोगी का मन हल्का और प्रसन्नचित्त हो उठता है। परिचारिकाओं की हँसी-खुशी की कहानियाँ भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करती हैं।
Jan Brody, author of Health Essays in The New York Times, says that in many Western hospitals, nurses are specially trained to be able to lighten up and cheer up patients; Because a person suffering from mental frustrations always remains uprooted and bored. There is a faint look on his face. But by creating an atmosphere of laughter, a wave of enthusiasm and enthusiasm arises in his mind. That's why in some hospitals videos, tapes have been manufactured, seeing which the patient's mind becomes light and happy. The happy-go-lucky stories of the hostesses also serve the same purpose.
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प्रार्थना से कामना सिद्धि मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही...