मानव का स्वरूप
आज तो मानव-मानव में स्वार्थ चेतना, न समझ कट्टरताओं और दुराग्रहों को देखकर मानव का विकृत स्वरूप ही प्रतिबिंबित हो रहा है आज तो लगता है यह संस्कृति का रूप-स्वरूप पूरी तरह परिवर्तित हो गया है। आज तो एक-दूसरे के प्रति सद्भाव, सद्भावना, स्नेह, प्यार, नाम मात्र को भी नजर नहीं आता। फिर सोचते हैं कि विश्व में असंभव कुछ भी नहीं है, एक-न-एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब असंभव में भी डालेगा। मानव में जागरण होगा, और अपने पूर्ववत संस्कारों व संस्कृतियों को व्यवहार में लाने में प्रयासरत होगा।
Today, seeing the selfishness, lack of understanding, bigotry and bigotry in human being, only the perverted form of human is being reflected; today it seems that the form and form of this culture has completely changed. Today even the name of goodwill, goodwill, affection, love towards each other is not visible. Then they think that nothing is impossible in the world, one or the other day such a thing will definitely come when they will put even the impossible. There will be awakening in humans, and efforts will be made to put their past rituals and cultures into practice.
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महर्षि दयानन्द की देश वन्दना आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के...