पाठय्रकम
अलग-अलग परिवारों की स्थितियाँ अलग-अलग हो सकती हैं, किंतु घर में क्लेश भरा वातावरण पैदा होने का कारण एक ही होता है और वह है, उसके सदस्यों का आत्मकेंद्रित हो जाना। आज, परिवारों में सुख-शांति और संतोष-आनंद की संभावना को साकार करने के लिए पहला महत्वपूर्ण कदम यह उठाया जाए कि व्यक्ति को पारिवारिक जीवन व्यतीत करने की कला का शिक्षण देने वाली कोई व्यवस्था बने। इसके लिए स्वतंत्र रूप से भी प्रयास किए जा सकते हैं। स्कूल-कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थाओं में विज्ञान, इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र तथा कला आदि विषयों का शिक्षण तो दिया जाता है, किन्तु वहाँ दक्षतापूर्वक पारिवारिक जीवन व्यतीत करने के लिए कोई पाठय्रकम नहीं होता।
The situations of different families may be different, but the reason for the creation of a disturbing atmosphere in the house is only one and that is, the self-centredness of its members. Today, to realize the possibility of happiness, peace and contentment in families, the first important step should be to create a system that teaches the art of leading a family life. Efforts can also be made independently for this. Science, History, Politics, Sociology and Arts etc. subjects are taught in school-colleges and other educational institutions, but there is no curriculum to lead a family life efficiently.
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महर्षि दयानन्द की देश वन्दना आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के...